करीब इतना रहो कि रिश्तों में प्यार रहे,
दूर भी इतना रहो कि आने का इंतज़ार रहे,
रखो उम्मीद रिश्तों के दरमियान इतनी,
कि टूट जाये उम्मीद मगर रिश्ते बरक़रार रहें।
उम्मीद खुद से रखो कभी औरों से नहीं,
यहां खुद के सिवा कोई किसी का नहीं।
इतना भी मत रुठ मुझसे,
कि तुझे मनाने की उम्मीद ही खत्म हो जाए।
सुना है हमने भी, उम्मीद पे जीता है जमाना,
क्या करे वो जिसकी कोई उम्मीद ही न हो।
बुरे वक्त में किसी से कोई उम्मीद मत रखो,
क्योकिं समझौते शेर को भी कुत्ता बना देते हैं।
उम्मीदें तैरती रहती हैं, कश्तियां डूब जाती हैं,
कुछ घर सलामत रहते हैं, आंधिया जब भी आती हैं,
बचा ले जो हर तूफां से, उसे “आस” कहते हैं,
बड़ा मज़बूत है ये धागा, जिसे “विश्वास” कहते है।
अभी कुछ वक्त बाकी है, अभी उम्मीद कायम है,
कहीं से लौट आओ तुम, मोहब्बत सांस लेती है।
उम्मीद की किरण के सिवा कुछ नहीं यहाँ,
इस घर में रौशनी का बस यही इंतज़ाम है।
और दोस्ती जो चाहो, चले ता-उम्र,
तो दोस्तों से कोई भी,उम्मीद ना रखें।
कभी बादल,कभी बारिश,कभी उम्मीद के झरने,
तेरे अहसास ने छू कर मुझे क्या-क्या बना डाला।
उम्मीदों की आग जब हद से ज्यादा हो,
बुझती है, सिर्फ अश्कों की बारिश से।